‘जय हो’ जग में जले जहाँ भी,
नमन पुनीत अनल को,
जिस नर में भी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को !
(राष्ट्रकवि “दिनकर”, रश्मिरथी)
हॉस्टल जीवनशैली में अभ्यस्त हो जाने के बाद शायद ही कभी
हमें सुबह में अरुणोदय की प्रखर एवं तेजपूर्ण लालिमा के शीतल दीदार से दिल और
दिमाग को आंदोलित करने का मौका मिला हो / हॉस्टल जीवनशैली के कारन उत्पन्न अथवा
स्वरचित इस अनियमित एवं अस्त-व्यस्त दिनचर्या ने कॉलेज जीवन में हमें सदा से इस
जीवन-प्रेरक एवं प्रकृति के अनुपम सौंदर्य से वंचित रखा / यधपि, भले ही हमारी इस
अस्त-व्यस्त दिनचर्या ने क्षितिज पर घटित होने वाली इस सार्वभौमिक प्राकृतिक सौंदर्य
से हमें दूर रखा हो परन्तु इसी कॉलेज जीवन ने हमें प्रोo डॉ कुमार कार्तिकेय के
रूप में यह देखने और समझने का बहुमूल्य अवसर प्रदान किया कि सूर्य सिर्फ पूरब दिशा
में ही उदित नही होता है वरन् वह प्रोo डॉ कुमार कार्तिकेय जैसे विद्वान एवं विराट
मष्तिष्क पर भी विराजमान हो अपनी तेजपूर्ण प्रकाशमयी उपस्थिति से समस्त संसार को
आलोकित कर सकता है / सुबह में सूर्योदय के समय जो शीतल परन्तु अत्यंत ही प्रखर एवं
तेजपूर्ण लालिमा दिखलाई पड़ती है वही लालिमा अथवा वही चमक हमें कार्तिकेय सर के विराट
मष्तिष्क-रूपी गगन से बाहर आती हुई दिखलाई पड़ती थी / उनके समस्त चेहरे पर एक अदभुत
प्रकार की चमक थी, एक तेज था, एक अत्यंत देदीप्यमान प्रकाशपुंज था, कभी न ख़त्म
होने वाली असीमित उर्जा थी जिसे शब्दों में वर्णित करना हमारे जैसे विद्या-विहीन
मस्तिष्क के लिए अत्यंत ही दुरूह एवं दुष्कर कार्य है / ऐसी चमक उनकी अभिमानरहित
मगर स्वाभिमानपूर्ण विद्वता एवं जिजीविषा का ही परिचायक हो सकता है / इस रूप में
भले ही हम अपनी अस्त-व्यस्त दिनचर्या के कारन सूर्योदय के प्राकृतिक दृश्य से
महरूम हो जाया करते थे पर बावजूद इसके कॉलेज पहुंचते ही उनके ललाट की लालिमा इसकी
भरपाई कर दिया करती थी / उन्हें अत्यंत ही गहराई से भारतीय संविधान की समझ थी / वह
मात्र संविधान जानते ही नहीं थे वरन् उसे प्रत्येक-पल जीते भी थे / संविधान तो
मानो उनका जीवन ही था / संविधान के बिना वह स्वयं की कल्पना भी नहीं कर सकते थे /
संविधान के बिना कार्तिकेय सर पूर्णतः अधुरा थे / भारतीय संविधान के साथ-साथ
उन्हें अन्य देशों के संविधान की भी गहरी समझ एवं अच्छी जानकारी थी / इस विद्वता
के पीछे उनका कठिन परिश्रम, अनवरत अध्ययन, सच्ची निष्ठा एवं लगन, पूर्ण समर्पण,
जिज्ञासु प्रवृति, सौम्यशिलता आदि अनेक महत्वपूर्ण गुण-श्रंखला विधमान थे / उनमे सीखने
के प्रति एक अदभुत तृष्णा थी जो सामान्य लोगों में अति दुर्लभ है / वह जानने को, पढ़ने
को, समझने को हर वक़्त आतुर दिखलाई पड़ते थे / उन्हें अपने छात्रों से भी सीखने में
कोई गुरेज नहीं था / वह सुबह आठ बजे से लेकर रात आठ बजे तक कॉलेज में अपना समय
समर्पित करने के बाद देर रात तक स्व-अध्ययन करते थे / सारी समकालीन विषयों पर
मजबूत पकड़ रखते थे / हमारी समझ में वह शिक्षक कम और विद्यार्थी ज्यादा थे / वह
अपने विचारों अथवा स्वयं के निष्कर्ष को हमलोगों पे जबरन कदापि नहीं थोपते थे / वह
हरदम कहा करते थे कि, “Develop
your own arguments” अर्थात
“अपना तर्क स्वयं गढो” / वास्तव में जो उनसे भिन्न विचार रखता था अथवा उनके तर्क
के विपरीत तर्क प्रस्तुत करता था उससे उनको अत्यधिक ख़ुशी होती थी वनिष्पत उनलोगों
के जो बिना समझे बुझे उनके तर्क के साथ हाँ में हाँ मिलाते थे / क्लास में पढाते
वक़्त तो उनकी तेजस्विता एवं ओजस्विता अपने चरम पर होती थी / उनके पढने और पढाने के
प्रति गहरे जूनून के सभी कायल थे / उनके क्लास में पढने के लिए छात्रों की दीवानगी
देखते ही बनती थी / छात्रगन उनके मुरीद थे / वह पढ़ाते थे तो ऐसा प्रतीत होता था
मानो आँखों के सामने दृश्य घटित हो रहा हो अथवा अदालत की कार्यवाही चल रही हो /
जहाँ एक ओर अन्य शिक्षकों के निर्धारित क्लास में भी कुछ छात्रगन अक्सर नहीं जाया
करते थे जिसमे मैं भी सम्मिलित था वहीँ दूसरी ओर उनके क्लास में बैठने के लिए जगहें
कम पर जाया करती थीं / यही नहीं, जब वह पढ़ाना प्रारंभ करते थे तो क्लास में एक
अदभुत प्रकार की शांति होती थी / उनके मुख-सागर से निकला हुआ प्रत्येक शब्द क्लास
में बैठे हुए छात्रों के लिए एक बेशकीमती हीरे के समान होता था / यह उनका अध्यापन
के प्रति अत्यंत गहरा जूनून ही था कि आज भी उनके द्वारा उच्चरित प्रत्येक शब्द
हर-पल कानो में गुंजायमान होते रहते हैं / उनकी सबसे बड़ी खूबी जिसने हमें सर्वाधिक
आकर्षित किया वह था उनका अनुशासन-प्रिय व्यक्तित्व / वह समय और नियम के अत्यंत
पाबंद थे / आज तक हमने उन्हें कभी भी कॉलेज परिसर में गले में बिना पहचान-पत्र
लटकाए हुए नहीं पाया / उनका पहचान-पत्र टुटा-फूटा एवं अत्यंत ही गन्दा होता था,
बावजूद इसके वह कभी भी कॉलेज परिसर में इसे अपने गले से नहीं उतारते थे / मैंने
दुसरे शिक्षकों में एक-दो और के सिवा अन्य किसी को ऐसा करते कभी नहीं पाया / उनका
यही व्यवहार, सिद्धांत, समर्पण, नियम या कानून के प्रति इतना गहरा आदर-भाव उन्हें
एक अलग कोटि के शिक्षक में खड़ा करता था / उनके कुशल मार्गदर्शन के कारन ही हमारी
कॉलेज की टीम देश की सर्वाधिक प्रतिष्ठित “बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया मूट कोर्ट
कम्पटीशन” जीतने में कामयाब हुई / वह वास्तव में हमलोगों से बहुत ज्यादा प्रेम
करते थे तभी तो हमलोगों से सदा-सदा के लिए विदा लेने से कुछ दिन पूर्व ही हमारी
कॉलेज को छोड़कर ‘राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, कटक” में पढाने चले गए थे क्योंकि
शायद उन्हें पता था कि वह हमलोगों से अनंतकाल के लिए पृथक होने वाले हैं और उनका
एकाएक इस तरह से अलग होना हमलोगों के लिए अत्यंत ही पीड़ादायक एवं असहनीय पल होगा /
इसीलिए उन्होंने अत्यंत ही चालाकी से विदाई की यह रश्म बहुत ही धीरे-धीरे निभाई /
वह यहाँ से कटक जाने के मात्र कुछ दिन बाद ही एकाएक गंभीर रूप से बीमार पड़ गए /
आनन्-फानन में उन्हें इस शहर स्थित ‘अश्विनी हॉस्पिटल’ में भर्ती कराया गया जहाँ
पर उन्हें तीन दिनों तक जीवन-रक्षक उपकरण पर रखा गया / इन तीन दिनों में हमारे
कॉलेज के छात्रों की बेचैनी अपने चरमोत्कर्ष बिंदु पर थी / कॉलेज के अधिकांश छात्र
एवं अन्य शिक्षक उन्हें देखने के लिए ‘अश्विनी हॉस्पिटल’ टूट पड़े थे / सबके आँखों
में आंसू, स्वर में विलाप, ह्रदय में भय और होठों पे दुआँ था / हम भी अत्यंत
चिंतित थे / हमने भी भगवान जगरनाथ से उनके स्वस्थ हो जाने के लिए प्रार्थना किया /
इतने लोगों के एकसाथ दुआओं का असर हुआ और कार्तिकेय सर पहले से बेहतर हो गए / हमने
भी राहत की साँस ली और सीधे ‘पूरी’ के लिए प्रस्थान किया जहाँ भगवान जगरनाथ के
दर्शन के पश्चात कटक के लिए रवाना हुए और कार्तिकेय सर से मुलाकात कर उनको प्रसाद
खिलाया / वह भाव-विह्वल हो उठे / वह छिपाने का लाख प्रयत्न कर रहे थे मगर उनके
आँखों से आंसू थम नहीं रहे थे / हमारे प्रेम ने उनकी आँखों के साथ-साथ उनके ह्रदय
को भी नम कर दिया था / धीरे-धीरे वह नाम आँखों के साथ ही हलकी निद्रा में प्रवेश
कर गए जिसके उपरांत हमलोग वापस अपने कॉलेज चले आये / तत्काल कुछ दिन बाद फिर वह
गंभीर रूप से बीमार पड़े / इस बार डॉक्टर ने कह दिया कि उन्हें कैंसर है / उन्हें
इलाज के लिए मुंबई ले जाया गया परन्तु मात्र चाँद दिनों के इलाज के उपरांत ही ज्ञान-गगन
का यह देदीप्यमान सितारा सदा-सदा के लिए असंख्य मनों को मायुष कर उस परम शक्ति के
साथ एकाकार हो गया जिसके द्वारा वह सृजित हुआ था / आज कार्तिकेय सर हमारे बीच नहीं
हैं परन्तु आज भी उनके शब्द हमारे कानों में गुंजित होते हैं, उनका दिया हुआ
निश्चल स्नेह ह्रदय में प्रवाहित होता है , उनसे ग्रहण ज्ञान मष्तिष्क में संचित
है / जी करता है उनसे जुड़ी तमाम यादों को अपने मानस-पटल पर स्मृति के रूप में
संचित कर लूँ / अंत में परमपिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि वह हमारी स्मृति
को इतनी शक्ति दें कि हमारे जीवन में उनके प्रत्येक सूक्ष्म एवं विशाल योगदान को हम
कभी न भूल पायें एवं उनके इस महान शख्सियत को सदा-सदा के लिए जीवित रख पाने में
समर्थ बनें / अंत में आपकी स्मृति को यह कहते हुए विनम्र श्रधांजली सहित कोटि-कोटि
प्रणाम, कि :-
“आना-जाना तो यहाँ की रीति रही है,
पर, दिल को दिल से जुदा करने की,
कोई संस्कृती नहीं है !!”
The Tribute Paid by:-
ROHIT KUMAR,
3rd
year B.A.LL.B,
School of Law,
KIIT University, Bhubaneswar,
And,
ABHISHEK RANJAN
3rd
Year B.A.LL.B,
School of Law,
KIIT University,
Bhubaneswar.