Friday, 25 December 2015

"मेरे पिताजी की अटल जी से वह मुलाकात !!”

“श्रीमान जी मैं तो सिर्फ आपका दर्शनार्थी बनकर आया हूँ !!”

मुझे स्पष्ट स्मरण नही है क्योंकि उस वक़्त मेरी उम्र मात्र दो से तीन वर्ष की रही होगी. दो-तीन वर्ष के उम्र की कोई बात याद होना या रखना साधारनतया संभव नही है और यदि किसी व्यक्ति-विशेष में यह जन्मजात काबिलियत मौजूद भी हो तो आमजन इतनी आसानी से ऐसे व्यक्ति के बातों पर यकीन नही कर पाते. यधपि, मैं ये दावा तो नही कर सकता कि मैं ऐसी किसी जन्मजात काबिलियत के साथ पैदा हुआ हूँ, परन्तु मैं इतना अनुभव जरुर करता हूँ कि मुझे अपने दो-तीन वर्ष के उम्र की बहुत सारी बातें याद हैं, यदि स्पष्ट नही तो धुंधली ही सही. इसके लिए घर-परिवार में अनगिनत बार मुझे व्यंग्यात्मक लहजों का सामना भी करना पड़ा है. दिसम्बर का महिना ख़त्म होने की दहलीज पर था. वर्ष था 1994. मेरे पिताजी और चाचा दिल्ली  के लिए कुच कर रहे थे. शाम का वक़्त था. मैं उन्हें तैयार देख रो रहा था. वे जाने के लिए तैयार थे. मुझे ठीक से याद तो नही मगर मैं भी शायद जाने कि जिद तो जरुर कर रहा होऊंगा और रोने की भी यही वजह रही होगी. वे घर के सामने ही किसी वाहन का इन्तेजार कर रहे थे, ताकि बिहटा पहुँच सके जहाँ से दिल्ली के लिए सीधी रेलगारियां उपलब्ध थीं. उस समय वाहन की उपलब्धता न के बराबर थी. मेरे गाँव से बिहटा के 7 किलोमीटर की दुरी अमूमन लोग टमटम से तय किया करते थे. कुछ निजी एवं सार्वजनिक वाहन भी उपलब्ध थे. शाम के समय मेरे गाँव से बिहटा शहर जाने के लिए चर्चित साधन के रूप में एक “दूध वाली गाडी” थी. यह एक व्यावसायिक गाड़ी थी जो हमारे ग्रामीण क्षेत्र के विभिन्न डेयरियों से दूध संग्रह कर पटना ले जाया करती थी. यधपि, यह एक सवारी गाड़ी नही थी बावजूद इसके शाम के समय जरुरी हालात में लोग इसकी मदद लिया करते थे. मेरे पिताजी और चाचा को भी अंततः इसी गाड़ी से बिहटा जाना पड़ा जहाँ वे से दिल्ली के लिए रवाना हुए. उस समय मुझे कुछ पता नही था कि वे कहाँ जा रहे हैं एवं किस उद्धेश्य से जा रहे हैं. ये सारी बातें मुझे बाद में मालूम हुईं. आज भारत-रत्न अटल जी के जन्मदिवस पर मुझे वही सारी बातें साझा करने की हार्दिक इच्छा है.

सन 1992 में लोकसभा के तत्कालीन अध्यक्ष श्री शिवराज पाटिल के द्वारा “सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरष्कार” की व्यवस्था प्रारंभ की गयी थी जिसके अंतर्गत समग्र रूप में संसद में सर्वश्रेष्ठ योगदान करने के लिए किसी एक सांसद को “सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरष्कार” से नवाजे जाने कि प्रक्रिया का आरम्भ हुआ था. सर्वप्रथम यह पुरष्कार सीपीआइ सांसद इन्द्रजीत गुप्ता के नाम जाने का श्रेय है जिन्हें यह पुरष्कार इसके स्थापना के वर्ष ही अर्थात 1992 में मिला था. सन 1994 में संसद ने एक सर्वकालीन ओजस्वी एवं प्रखर वक्ता सर्वश्री अटल बिहारी वाजपेयी को जिनकी तेजस्विता, कर्मशीलता और मानवतावादी विचारधारा ने उनके सक्रिय राजनीती में रहने के दौरान भी उन्हें सदैव राजनीती से ऊपर रखा, को इस पुरष्कार से विभूषित करने का फैसला किया था. मेरे पिताजी और चाचा उन्हें इसी उपलक्ष्य पर बधाई देने उनके उस समय के निवास स्थान 6, रायसीना रोड, नयी दिल्ली पहुंचे थे. उस समय वह लोकसभा में विपक्ष के नेता थे. एक आम आदमी का देश के इतने बड़े राजनितिक शख्सियत से मिलना कभी भी इतना आसान नही रहा है. आज के दौर में तो यह प्रक्रिया और दुरूह है. मेरे पिताजी और चाचा भी मन में मात्र स्नेह, समर्पण और विश्वास की पूंजी लिए गए थे. यदि प्रेम और विश्वास के कारन जन्मांध सुर को कृष्ण मिल सकते थे तो निसंदेह अटल बिहारी वाजपेयी इससे बड़े नही थे. हालाँकि, दिसम्बर का पूरा अंतिम सप्ताह उनलोगों ने दिल्ली के हाड़-कंपकपाती ठण्ड में अटल जी से मिलने की आशा, प्रयास और प्रतीक्षा में बितायी. दिसम्बर बीत गया और उसके साथ सन 1994 भी परन्तु अटल जी से मुलाकात नही हुई. वर्ष का पहला दिन भी प्रतीक्षा में ही बिता परन्तु दुसरा दिन उस प्रतीक्षा के परिणाम के रूप में फलीभूत हुआ जब 2 जनवरी 1995 के दिन सुबह-सुबह मेरे पिताजी और चाचा का सहज रूप से अपने प्रिय राजनेता शारदापुत्र अटल जी से मिलना हो गया. उस समय वह कहीं जाने की तैयारी में थे और अपने स्टडी टेबल पर खड़े होकर नजरे झुकाएं किसी अखबार को सरसरी निगाहों से देख रहे थे. उनसे रुबरु होते ही मेरे पिताजी का अपने प्रिय राजनेता शारदापुत्र अटल जी के लिए बधाई के शब्द, शैली और अंदाज़ क्या थे आइये आपको उससे रुबरु कराते हैं:


शारदापुत्र अटल
                
                 सूर्य अटल है, चाँद अटल और अटल हिमालय !
                 देश-दुनिया का चौथा अटल दिल्ली संसद में है विराजे !!
                 अटल शक्ति है, अटल राष्ट्रभक्ति है और अटल स्वाभिमान !
                 संसद ने भी हारकर माना यही अटल है संसद का शान !!
                 किया अटल समर्पण जीवन में, भारत-माता सिर्फ तू ही महान !
                 जिसकी जगह बनी तेरी चरणों में, बाकी सब धन धुल समान !!
                 भारत-मां की सहेली है जिसे दिया उच्च सम्मान !
                 तार-तार कर दिया जेनेवा में, मुंह लौटाए लौटा पाकिस्तान !!

                          निस्वार्थता का प्रतीक अटल,
                          उनकी कैसे गुणगान करूँ मैं,
                          छल, छदम से भरे राजनेता,
                          उस बीच इस अटल सूर्य की,
                          किन शब्दों से नमन करूँ मैं ?

                          दिनकर ने था दिया कर्ण को,
                          उपनाम “रश्मिरथी” का,
                          बरबस बिहारी को है सताती,
                          क्या कम करिश्मा है उससे,
                          मेरे इस ‘शारदापुत्र’ अटल का ?
                  
                   और अंत में राष्ट्रकवि दिनकर के शब्दों में कि:
                   
                  “जय हो जग में जले जहाँ भी नमन पुनीत अनल को !
                   जिस नर में भी बसे हमारा नमन तेज को बल को !!”

बधाई के उपरोक्त शब्दों और शैली से भावविभोर हो अटल जी ने मेरे मेरे पिताजी और चाचा से अपनी जिज्ञासा प्रकट करते हुए पूछा कि “भई, आप किस सीट के टीकटार्थी हैं ?” चूँकि यह एक महज संयोग ही था कि इस मुलाकात के वक़्त चुनावी माहौल था, अतः इसी भावना से ओत-प्रोत हो उन्होंने यह प्रश्न कर डाले. परन्तु इस उत्तर के पश्चात कि “श्रीमान जी मैं किसी सीट का टीकटार्थी बनकर नहीं बल्कि सिर्फ आपका दर्शनार्थी बनकर आया हूँ” उन्होंने अपनी चिरपरिचित शैली के जोरदार ठहाके के बीच मेरे पिताजी का नामकरण करते हुए कहा कि, ”भई, तब तो आज से मैं आपको दर्शनार्थी जी ही कहकर पुकारूँगा.” इस परिदृश्य के उपरान्त यहाँ यह ‘काबिल-ए-गौर’ हो जाता है कि जाने-अनजाने में उन्होंने इतनी बड़ी दौलत, इतना बड़ा उपहार, इतना बड़ा सम्मान दे डाला जो अपने आप में एकलौता है. चूँकि, सम्पूर्ण भाजपा परिवार में माननीय विधायकों और सांसदों की संख्या हजारों में हो सकती है, माननीय मंत्रीगणों की संख्या सैंकड़ो में हो सकती है, माननीय मुख्यमंत्रीगणों की संख्या दहाई के अंक में हो सकती है मगर ‘दर्शनार्थी’ तो अकेला एवं इकलौता है. ठहाके-दर-ठहाके तो तब तक चलते रहे जब तक वे तीनो साथ में रहे.

‘दर्शनार्थी’ के रूप में नामकरण का महत्व:

सनद रहे कि बिहारी का संबोधन आम हिन्दुस्तानियों के द्वारा आम बिहारियों के लिए ‘हे दृष्टि’ से दृष्टिगोचर होकर प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द “ऐ बिहारी” का संबोधन है, तो वहीँ दर्शनार्थी का संबोधन भारत-भूमि के रत्नों के हार से जुड़े हुए एक रत्न भारत-देश के दिल ‘दिल्ली’ कि  दिल की नब्ज पर हरक्षण हथेली टिकाए रखने वाले कवि-दिल राजनेता एवं भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री तथा भाजपा के महामहिम भारत-रत्न सर्वश्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के द्वारा दी  गयी है.


मिथिलेश कुमार सिंह 





                         
           


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