अंतर के भक्ति-भावों को ,
तेरे पग पर धरने आया हूँ /
भारत के असली रतन को ,
सौ बार नमन करने आया हूँ /
हे ! जगरनाथ के पुत्र
तेरा वंदन करने आया हूँ /
तू जीए हजारों साल, ये
दुआ अर्पण करने आया हूँ /
जब तक भू पर गंगा बहेगी,
'और
गगन में चाँद रहेगा ,
हे मानवता के महामुकुट !
जग में अमर तेरा नाम रहेगा !!
जब तक अम्बर की चांदनी,
धरती को नहलाएगी ,
जब तक गंगा कि अविरल धारा,
भू पर
बहती जाएगी,
जब तक गुलाब कि पंखुरियों से,
खुशबु
बाहर आएंगे ,
कोयल
के मीठे गीत ,
प्राण में
मादकता पहुचाएंगे ,
जब तक अम्बर में सूर्य
के,
तन में शेष
तपन होगा ,
वायुमंडल में पवन
होगा ,
अग्नि में शेष जलन होगा
,
हे ! विराट पुरुष तब तक
धरती पर ,
तेरी कृतियों का अभिनन्दन होगा -2
और, दो पुष्प अर्पित करता हूँ ,
उस गौरवमयी माँ के चरणों पर,
जिसके आँचल के छाओं में पल,
आज तु
इतना बड़ा हुआ है
,
विश्व
का सरताज बना
है ,
अपने पैरों पर खड़ा
हुआ है /
और अंत में राष्ट्रकवि
दिनकर के स्वर्ण शब्दों में कि :-
" जय हो, जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को
जिस नर में भी बसे हमारा नमन तेज को बल को ! "
By :- ROHIT KUMAR
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