आज हमारी जनजागृति यात्रा का ग्यारहवां दिन है जिसे
संगठन ने "सुनवाई - कार्यवाही यात्रा" का नाम दिया है / यह यात्रा अभी
तक कितना सफल रहा ये तो मैं पूर्णतः नहीं बता सकता पर इतना जरुर कह सकता हूँ कि आज
मैं जिस भारत में घूम रहा हूँ उस भारत की कल्पना भी कभी मेरे मन - मष्तिष्क को नही
छू पायी थी / मैं कीट लॉ स्कूल भुबनेश्वर में बीoएoएलoएलoबीo, द्वितीय वर्ष का
छात्र हूँ / यहाँ मजदूर किसान शक्ति संगठन के साथ इंटर्नशिप अर्थात क़ानूनी
प्रशिक्षण के लिए आया हूँ / यह संगठन गरीबों, दलितों, पिछड़ों एवं किसानों के
उत्थान के लिए कार्य करता है / साथ ही साथ संगठन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य है -
न्याय एवं सामाजिक समानता / मैं समझता हूँ यह संगठन किसी विशेष परिचय का मोहताज
नही है / ईमानदारी से कहूँ तो यह यात्रा ( जिसका प्राथमिक उद्देश्य है, ' राजस्थान
सुनवाई का अधिकार अधिनियम 2012 ' को जन-जन तक पहुँचाना ) प्रारंभ होने से पहले मैं
मन ही मन सोच रहा था कि मैं यहाँ किस घनचक्कर में पड़ गया / क्या इसीलिए मैं इतने
रूपए खर्च कर लॉ कर रहा हूँ / परन्तु, यात्रा प्रारंभ होने के पश्चात मेरे ह्रदय
में जो वैचारिक परिवर्तन हुआ उसे मैं शब्दों के माध्यम से व्यक्त करने में असमर्थ
हूँ/
हमारी टीम राजसमन्द जिले के कुम्भलगढ़ तहसील के दौरे
पर है / यह क्षेत्र भारतीय इतिहास के असली नायक , वीरत्व के पर्याय एवं अकूट
जिजीविषा के धनी महाराणा प्रताप का जन्म-स्थल रहा है / प्रथमदृष्टया ऐसा प्रतीत
होता है जैसे प्रकृति ने अपनी सारी सुषमा कुम्भलगढ़ के गोद में रख दी हो / चारों ओर
से अरावली शैल-मालाओं से घीरा यह क्षेत्र,
'राजस्थान का काश्मीर' के नाम से भी जाना जाता है / कहना कठिन
है कुम्भलगढ़ प्रकृति के गोद में है या
प्रकृति स्वंय कुम्भलगढ़ के गोद में / अरावली पर्वत-मालाओं को देखने से ऐसा
प्रतीत होता है मानो धरित्री ने अपनी श्रृंगार और सजावट के खातीर इन्हें अपनी
ग्रीवा का हार बनाया है / शैलों की ऊँची-ऊँची चोटियाँ और हरे-भरे वृक्षों की मुस्कुराती
टहनियां वातावरण में एक विहंगम दृश्य उत्तपन करता है / जी करता है प्रकृति की इस
अनुपम सौन्दर्यता को सदा के लिए अपने मानस पटल पर स्मृति के रूप में संचित कर लूँ
/ मुझे जब भी यात्रा के दौरान थोड़ा - बहुत अवकाश मिलता है, मैं अनिमेष नेत्रों से
प्रकृति की इस अनुपम सौन्दर्यता को निहारता रहता हूँ /
कुम्भलगढ़ मात्र एक प्राकृतिक जगह ही नहीं बल्कि बल्कि एक ऐतिहासिक स्थल भी
है /
वीरों की भूमि रही है कुम्भलगढ़ / महाराणा कुम्भा
द्वारा निर्मित 'कुम्भलगढ़ का किला' एक ऐतिहासिक धरोहर भी है और दर्शनीय स्थल भी / किले
को देखने के पश्चात भारतीय कलाकृति के अनूठे स्वरुप का दर्शन होता है / इस किले का
बादल महल कला और विज्ञान के संगम का एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत करता है, साथ ही साथ
500 वर्ष पूर्व विज्ञानाकाश में लहराती भारतीय पताका का दर्शन भी कराता है / यह
बादल महल 'फ़तेह प्रकाश' के नाम से भी जाना जाता है / ऐसी मान्यता है कि राजा फतेह
प्रकाश ( 1884-1930 ) ने कुम्भलगढ़ के कई पुराने भवनों को तोड़कर यहाँ बादल - महल
बनवाया / कुम्भलगढ़ दुर्ग अपने आकार, संरचना एवं भौगौलिक दृष्टिकोण से राजस्थान के
सभी दुर्गों में श्रेष्ठ है / कुम्भलगढ़ का संपूर्ण इतिहास यहाँ की प्राकृतिक
सुन्दरता, यहाँ के ऐतिहासिक दुर्ग और वीरता के कहानी से ओत-प्रोत है /
परन्तु उपरोक्त तथ्यों
में सिर्फ कुम्भलगढ़ के उपरी पहलु का दर्शन होता है / कुम्भलगढ़ के निचली पहलु से
रूबरू होने पर पता चलता है कि इस प्रकृति के पीछे एक सूखेपन का वास भी है, इस
सुषमा के पीछे एक रूखेपन का अहसास भी है और कुम्भलगढ़ के पर्वतों पर लहराते हुए जिन
फूलों एवं हरियालियों को देखकर हमारा ह्रदय
प्रसन्नता से भर उठता है, उन फूलों एवं हरियालिओं क़ पीछे एक विकट वेदना का
निवास भी है / मैं इसी दुसरे पहलु को अपनी इस यात्रा तथा लेखनी का आधार बनाना
चाहता हूँ / मैं इन पर्वतों के पीछे तथा इन हरियालियों के बीच में छिपी जिस वेदना
का वर्णन कर रहा हूँ उसके कल्पना मात्र से ह्रदय कम्पित हो उठता है / मैं इन
पहाड़ियों के सौन्दर्यता एवं मुस्कान के पीछे, छिपे गहरे दर्द से जरुर रूबरू करूँगा
पर उसके पहले यात्रा के प्रारंभिक चरणों पर प्रकाश डालना भी नितांत आवश्यक है /
हमारी यात्रा 26 मई 2013 को शुरू होती है / हमारी टीम में कुल नौ सदस्य हैं /
सबलोगों की अलग-अलग जवाबदेही तय की गयी है/ 26 मई को दोपहर तीन बजे हमारी टीम
गोमती चौराहा पहुँचती है / इसयात्रा के जनगीत के साथ ( चेत सको तो चेत रे साथिरा
रे ) हमारी बात शुरू होती है / करीब दो सौ लोग कौतुहल भरी निगाहों से देख रहे होते
हैं / सबको बताया जाता है कि राजस्थान में एक नया कानून बना है - " सुनवाई का
अधिकार अधिनियम " / अब यदि आपकी कोई भी समस्या हो तो आपको अपने पंचायत के एकल
खिड़की में सादे कागज पर सिर्फ एक अर्जी देनी होगी/ इस कानून के तहत सरकार अब आपकी
बात सुनने के लिए विवश है / हमारी इन सूचनाओं से मौजूद लोगों की आँखें आशान्वित हो
उठती है / मौके पर ही बहुत लोग अपनी समस्या बता अर्जी लिखने के लिए निवेदन करने
लगते हैं / हमने करीब पांच लोगों की अर्जियां लिखीं जो पीने की पानी की समस्या ,
पेंशन न मिलने की समस्या आदि से सम्बंधित थी / आगे बढ़ते हुए हमलोग जनावद पंचायत
पहुंचे / एक सार्वजनिक संस्थान पर करीब बीस बुजुर्गों की टोली बैठी हुई थी / हमने
अपना परिचय दिया तथा उनलोगों को भी इस कानून का फायदा बताया / सारे लोग प्रसन्न हो
उठे / गाँव की कुछ सार्वजानिक समस्याओं से हमें अवगत कराया / हमने उसे अर्जी के
रूप में कलमबद्ध किया तथा उस पर उनलोगों के हस्ताक्षर/अंगूठे के निशान लिए / हमें
भी लगा हमारी यात्रा सफल हो रही है / पर बुजुर्गों की उस टोली ने अगले ही क्षण
हमारे अन्दर पनप रही ऐसी विचारों को दबने के लिए विवश कर दिया / उन बीस लोगों की
टोली में से एक ने भी आवेदन लेकर पंचायत में दिए जाने की जहमत नहीं उठाई / इसके
पीछे कोई आलस्य का भाव नहीं था उनमे, उनके आँखों में सुस्तिपन की कोई अहसास भी न
थी, पर एक चीज थी जिसे मैंने पढ़ा और वह थी किसी अनहोनी की आशंका, वही आशंका जो
किसी दुर्बल के मन में किसी सबल के खिलाफ आवाज उठाने से पहले स्वाभाविक रूप से
पैदा हो जाती है / मेरा मानना है इसी भय ने भारत को जकड रखा है / यही भय प्रगति
में अवरोध उत्त्पन्न कर रहा है / पिछड़ों को पिछड़ा तथा दलितों को दलित रहने के लिए
विवश कर रहा है / स्वंय के सामाजिक उत्थान के लिए इन्हें इस भय से ऊपर उठना होगा /
अब रात के नौ बज
चुके हैं / हमारी टीम जनावद गाँव में घूम-घूम कर माइक द्वारा लोगों को एक
सार्वजनिक स्थान पर एकत्रित होने के लिए अनुरोध कर रही है / करीब आधे घंटे बाद
70-80 लोग इकट्ठे होते हैं / हमारी टीम इन्हें भी इस कानून के बारे में विस्तृत
रूप से बताती है / सबलोग धैर्यपूर्वक सुनते हैं और आखिरी में हमलोग मौजूद ग्रामवासियों
से अनुरोध करते हैं कि हमारी टीम के एक-एक सदस्य को अलग-अलग घरों में खाना खिलाएं
/ लोग हर्षित हृदय से हमारी अनुरोध स्विकार करते हैं और हमारी टीम के हरेक सदस्य
को अलग-अलग घरों में खाना खिलाने का प्रबंध करते हैं / तत्पश्चात हमलोग रात्रि विश्राम के लिए पंचायत
केंद्र के नवनिर्मित भवन 'राजीव गाँधी सेवा केंद्र' के लिए प्रस्थान करते हैं और
वहीँ रात्रि विश्राम होता है / अगले दिन सुबह उठकर हमलोग पंचायत खुलने का इंतज़ार
करते हैं / राजस्थान के राज्यसचिव के आदेशानुशार पंचायत की एकल खिड़की जहाँ R.T.H Act के तहत
आवेदन दिया जाता है, प्रत्येक दिवस सुबह दस से बारह अनिवार्य रूप से खुली रहनी
चाहिए / पर 10:30 तक उस खिड़की तथा पुरे पंचायत भवन में किसी का कोई अता-पता नहीं
था / ग्रामवासियों के अनुसार, यह खिड़की कभी नहीं खुलती / हारकर हमलोग इसकी सुचना जिलाधिकारी
को देते हैं / उपरी दबाव के कारन आधे घंटे बाद पंचायत भवन में पंचायत सचिव कमलदीप
धवन का आगमन होता है / खैर, बहुत लोग पलकें बिछाये उनकी प्रतिक्षा में थे / हमने
उनसे एकल खिड़की के बाबत पूछा तो उन्होंने बाहर से खिड़की दिखाया / पंचायत खोलकर
अन्दर से दिखाने का अनुरोध किया गया / जैसे ही पंचायत भवन खुला, हमारी टीम
अन्दर की व्यवस्था देखकर दंग रह गई / जिस एकल खिड़की पर रोजगार सहायक और सचिव बैठते
हैं, और जहाँ R.T.H Act के तहत आवेदन स्विकार किया
जाता है, उस खिड़की को सीमेंट के करीब दो सौ बोरों से ढँक दिया गया है / किसी कानून
के साथ ऐसा खिलवाड़ तथा अपने पद और जवाबदेही के साथ मस्ती का ऐसा आलम, शायद पहले
मैंने कभी नहीं देखा था / वह बार-बार हमारी टीम से
चाय पीने के लिए चलने का आग्रह कर रहे थे, पर हमने विनम्रता से उनके आग्रह को ठुकरा
दिया क्योंकि इस आग्रह के पीछे उनके अंतर में एक साजिश थी, उनके ह्रदय में एक भय
था, उनके विचार में हमारी सहानुभूति जीतने का एक षड़यंत्र था / खैर, हमने उनसे
वैकल्पिक खिड़की की व्यवस्था कर मौजूद लोगों की अर्जियां स्विकार करने के लिए
अनुरोध किया तथा सीमेंट के बोरों को भी जल्द से जल्द हटवाने का आग्रह किया / उन्होंने
लोगों की अर्जियां स्वीकार की तथा बोरों को भी जल्द ही हटवाने का आश्वासन दिया /
दोपहर करीब 1:15 बजे हमारी टीम कांकरवा पंचायत के लिए रवाना हो जाती है / कांकरवा
पहुचने के बाद रात दस बजे तक दो गावों में सभा का आयोजन कर हमलोग कानून के बारे
में ग्रामवासियों को अवगत करा चुके थे / वहां भी अलग-अलग लोगों के घरों में खाना
खाने के पश्चात एक ग्रामवासी के घर के छत पर रात्रि विश्राम होता है /
अहले सुबह करीब
8:00 बजे हमारी टीम कांकरवा पंचायत के 'डूंगरी का भीलवाडा' गाँव पहुंचती है / माइक
से प्रचार करने के बाद लोग इकट्ठे होते हैं / हमारी बातें सुनने के बाद लोग अपनी
समस्याएं गिनाने लगते हैं और इसी समस्याओं को सुनने के क्रम में एक अजीबोगरीब तथ्य
हमारे सामने प्रकट होता है / जनवरी 2009 में रोजगार गारंटी के तहत 'दाता की भागल
से गाबड़ी तक' सड़क कार्य करने वाले लगभग 80 श्रमिकों का भुगतान बाकी है / इस कार्य
में इसी गाँव के नहीं बल्कि आस-पास के दो-तीन गाँव के श्रमिक भी थे / बहुत सारी
सार्वजनिक समस्याएं भी सामने आयीं - जैसे पूरी बस्ती में मात्र एक हैंडपंप का
होना, बिजली का न होना, रास्ता ठीक न होना आदि.../ हमने उनलोगों से पंचायत में
सुबह दस बजे आने के लिए निवेदन किया / आज हमारे प्रचार-प्रसार का प्रत्यक्ष प्रभाव
या असर देखने को मिल रहा था / पिछली रात को जिन दो बस्तियों में हमने प्रचार किया
था उन बस्तियों के अधिकांश लोग जो किसी समस्या से जूझ रहे थे, पंचायत भवन आ पहुंचे
/ साथ ही साथ डूंगरी का भीलवाड़ा जहाँ हमलोग कुछ समय पहले ही गए थे, के लोग भी
पंचायत भवन आ पहुंचे / रोजगार सहायक एकल खिड़की पर मौजूद था / कुछ देर बाद तहसीलदार
आये, रोजगार सहायक को कुछ हिदायतें दी तथा आम जनता की कुछ मौखिक समस्याएं सुने और
चलते बने / आम जनता के प्रति उनका व्यवहार, वाणी में संयम का अभाव, हमारी टीम को
कुछ नागवार गुजरा पर हमने बीच में उन्हें टोका नहीं क्योंकि हमलोग अपने प्राथमिक
उद्देश्य से भटकना नहीं चाहते थे / करीब दो सौ लोग पंचायत भवन में उपस्थित थे /
अधिकांश लोगों की समस्याओं की अर्जी हमारी टीम ने तैयार की और उनको रशीद दिलवाया /
जिन लोगों का 2009 से नरेगा का भुगतान रुका हुआ है, उनलोगों ने भी R.T.H Act के तहत
पंचायत में अर्जी दी / 81 लोगों ने रोजगार गारंटी के तहत काम की मांग की / इंदिरा
आवास बनवाने, हैंडपंप लगवाने तथा बिजली की समस्या से सम्बंधित भी बहुत आवेदन दिए
गए / तत्पश्चात हमारी टीम ने कांकरवा गाँव में ही अलग-अलग लोगों के यहाँ दोपहर का
भोजन किया और एक घंटे के विश्राम के बाद करीब तीन बजे हमारी टीम अगले पंचायत ओड़ा
के लिए रवाना हो गई / यही पंचायत उस वेदना का आरम्भ बिंदु है, सुन्दरता के पीछे
दबे हुए उस गहरे दर्द की सरिता का श्रोत स्थल है, मुस्कुराती हुई हरियालिओं के बीच
में गहरी पीड़ा एवं अकेलेपन के अहसास से जूझ रही आबादी की करुण कथा एवं मार्मिक
दास्तान की पृष्ठभूमि है, जिससे आपको रूबरू कराने का मैंने वादा किया है / पता
नहीं प्रकृति क्यों अपनी मुस्कानों के पीछे, अपनी सुन्दरता का सहारा लेकर, अपनी ही
गोद में पल रही लोगों की पीड़ा को छिपाए हुए है, दबाए हुए है / ऐसा लगता है जैसे
अरावली की पर्वत मालायें एक दुसरे के बाँहों में बाहें डालकर अपने बीच में छिपी
जनमानस की तकलीफों को छिपाना चाहती हो, इसे दूसरों के सामने प्रकट नहीं होने देना
चाहती / हमलोग जिस रास्ते से गुजर रहे थे उस रास्ते में आम के वृक्ष की
नन्ही-नन्ही झुकी हुई टहनियां, मस्तानी हवा के वेगों से झूमती हुई, गाती हुई,
हंसती हुई और इठलाती हुई, धरती की मिट्टी से आलिंगन को बेताब थी / पर न जाने हमारे
आगमन पर प्रकृति की ऐसी मुस्कराहट, असाधारण ख़ुशी की आंगिक अभिव्यक्ति ने मेरे मन
में एक संशय पैदा किया, मुझे कुछ खोजने के लिए विवश किया / कुछ समय बाद जब मैं
प्रकृति के बीचों-बीच, स्वंय प्रकृति की अंक में पल रही लोगों की पीड़ा, क्लेश तथा
करुण कथा से वाकिफ हुआ, तब मुझे अहसास हुआ की मेरा वह संशय अक्षरशः सत्य था /
प्रकृति की वैसी मुस्कराहट इनलोगों के दर्द, तकलीफ़ अथवा पीड़ा को छिपाने का एक वैसा
ही प्रयास था, जैसा कोई व्यक्ति अन्दर से टुटा हुआ हो, अन्दर ही अन्दर किसी पीड़ा
से कराह रहा हो, पर बावजूद इसके लोगों को दिखाने के लिए अपनी होठों पर झूठे
मुस्कान बिखेर रहा हो / हमारी टीम ओड़ा पंचायत के दोआस गाँव के अंतर्गत 'ढालेड़ा की
नारी' बस्ती पहुँच चुकी है / इस बस्ती तक पहुँचने के लिए हमें करीब 200-250 की
ऊंचाई पर चढ़ना पड़ा / पहाड़ियों के बीच में बीस-पच्चीस घरों की बस्ती, वो भी काफी
दूर-दूर पर / सरकार की तरफ से पीने के पानी के लिए मात्र एक हैंडपंप की व्यवस्था,
वो भी आंशिक रूप से निष्क्रिय / वैकल्पिक तौर पर एक कुवां जिसका पानी गाँव वाले
पीतें हैं / उस कुआं को देखने का अवसर मिला ,एक बारह साल का बच्चा लगभग 300 फीट
गहरे कुँए से पानी खिंच रहा है / स्थिति ऐसी की थोड़ी सी हल्की चुक भी जीवन का
व्यापार साबित हो सकता है / परन्तु कोई दूसरा विकल्प नहीं क्योंकि जल तो आखिर जीवन
है / बस्ती के लोग जानते भी नहीं कि बल्ब का प्रकाश कैसा होता है, शायद सौभाग्य से
कभी शहर गए होंगे तो जरुर देखे होंगे / संपूर्ण आबादी अन्धकार में रहने की अभ्यस्त
हो चुकी है, प्रकाश की आशा त्याग चुकी है, जीवन को तम का पर्याय मानकर बैठ चुकी है
/ करीब तीन चार बार माइक से पुरे पहाड़ियों के बीच घूम-घूम कर आग्रह करने के पश्चात
मात्र पच्चीस-तीस लोग इकट्ठे हुए / हमलोगों ने अपनी बातें रखीं, उनके समस्याओं को
इस कानून की मदद से दूर करवाने का भरोसा दिलाने का प्रयत्न किया पर अगले सुबह हमें
पता चला कि हमारा वह प्रयत्न बेकार था क्योंकि दो-तीन बार माइक लेकर दुर्गम
पहाड़ियों के बीच घूम-घूम कर बार-बार पंचायत में चलने के लिए आग्रह करने के पश्चात
भी लोग इकट्ठे नहीं हुए / एक व्यक्ति भी नहीं आया / एक क्षण के लिए ऐसा लगा कि
भारत इसलिए नहीं बदल रहा है क्योंकि यहाँ के लोग बदलना नहीं चाहते / परन्तु शांति
से सारी तथ्यों पर विचार करने के पश्चात मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि इसमें गलती
इनलोगों की नहीं है / गलती तो उनलोगों की है जिन्होंने इनके विश्वास के मजबूत
चट्टान को तोड़-तोड़ कर अणु-परमाणु में बदल दिया है / इन्हें इस स्थिति में लाकर खड़ा
कर दिया है कि विश्वास का बीज इनके ह्रदय के धरातल पर कभी अंकुरित न हो सकेगा /
तभी तो, हमलोग निस्वार्थ रूप से इनकी मदद करने गए थे फिर भी ये इकट्ठे नहीं हुए / अपने
क्लेश को अपने अंतर्मन में दबा कर रखना ही इन्होने बेहतर समझा / मैं समझता हूँ ऐसी
परिस्थितियां हिन्दुस्तान के भविष्य के लिए एक खतरनाक संकेत है / मैं नक्सलवाद का
कोई समर्थक नहीं वरन कट्टर विरोधी हूँ पर बावजूद इसके मुझे यह कहने में कोई संकोच
नहीं कि ऐसी परिस्थितियां ही आगे चलकर नक्सलवाद के नदी का उद्गम स्थल साबित
होती हैं, और फिर दोष इनलोगों के सर पर मढ दिया जाता है, जबकि सच्चाई यह है कि इस
समस्या की सारी रुपरेखा "हमलोगों" के द्वारा तैयार की जाती है /
नक्सलवाद रूपी बबूल के इस वृक्ष को रोपते भी हम ही हैं, सीचतें भी हम ही हैं, और
यही वृक्ष जब बड़ा होता है और इसके शूल हमारे पैरों में चुभते हैं, तब जाकर कहीं
हमें दर्द का अहसास होता है / फिर बात उठती है बबूल के इस वृक्ष को जड़ से काटने की
लेकिन तब-तक जंगल बहुत फ़ैल चूका होता है / एक संशय जो आपके मन में स्वाभाविक
रूप से उत्त्पन्न हो रहा होगा, उसे मैं दूर कर दूँ तो अच्छा होगा / आप सोंच रहे
होंगे कि ऊपर के वाक्यों में मैंने जो बार-बार 'हमलोगों' शब्द का प्रयोग किया है,
ये हमलोग आखिर हैं कौन ? क्या यह 'हमलोग' सम्पूर्ण हिंदुस्तान की जनता की ओर इंगित
करता है, या सरकार अथवा शासन-प्रशासन की ओर ?
परन्तु मैं आपलोगों को यह बता दूँ कि यह 'हमलोग' ना तो हिन्दुस्तान के
संपूर्ण आबादी का सूचक है, ना ही सरकार अथवा शासन-प्रशासन का / यह 'हमलोग' उन
सारे लोगों की ओर इशारा करता है जिन्होंने इन गरीबों, मासूमों, दलितों, पिछड़ों
अथवा वंचितों के अधिकारों को छीना है और अभी तक छीनते आ रहे हैं / और फिर से मुझे
यह कहने में कोई झिझक नहीं कि इस तरह से इन गरीबों के अधिकारों का छीना जाना,
बार-बार इनको विभिन्न प्रकार के अमानवीय शोषण का शिकार बनाना, भविष्य के किसी
महारण को निमंत्रण है / मेरी ये बातें हवा-हवाई नहीं है बल्कि मेरे इन उपरोक्त
कथनों का भारत के दो-दो राष्ट्रकवियों की पंक्तियाँ खुलेआम समर्थन करती हैं, कि :-
चुराता न्याय जो, रण को बुलाता भी वही है,
युधिष्ठिर स्वत्व की अन्वेषणा पातक नहीं है /
नरक उनके लिए जो पाप को स्विकारते हैं ;
न उनके हेतु जो रण में उसे ललकारते हैं /
राष्ट्रकवि
'दिनकर' ( कुरुक्षेत्र )
एवम
अधिकार खो कर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है;
न्यायार्थ अपने बंधू को भी दंड देना धर्म है /
इस तत्व पर ही कौरवों से पांडवों का रण हुआ,
जो भव्य भारतवर्ष के कल्पांत का कारण हुआ //
राष्ट्रकवि 'मैथिलीशरण
गुप्त' ( जयद्रथ-वध )
भारतीय संविधान प्रत्येक भारतीय नागरिक को प्रदान किये गए मौलिक
अधिकारों के हनन की स्थिति में सीधे तौर पर उच्च
न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय का
दरवाज़ा खटखटाने की अनुमति देता है / मेरा मानना है कि भारतीय संविधान का यह
प्रावधान राष्ट्रकवि दिनकर और गुप्त द्वारा लिखित इन अधिकार रक्षा समर्थित पंक्तियों
का ही रूपांतरित स्वरुप है / वैसे तो इस यात्रा ने मेरे अन्दर न जाने कितने
वैचारिक परिवर्तनों के बीज बोये पर उन सबमें से एक परिवर्तन जो अपने आप में एक
विशिष्ट स्थान रखता है, वह है - 'आरक्षण के प्रति मेरे दृष्टिकोण में बदलाव' / मेरा
जन्म भूमिहार-ब्राह्मण कुल में हुआ है / मैं शुरू से ही आरक्षण-विरोधी था जैसा कि
सामान्य कोटि के अधिकांश लोग हुआ करते हैं / परन्तु यहाँ के परिस्थितियों के
सूक्ष्म निरिक्षण और जटिल हालातों के गहनतम अवलोकन के पश्चात, मुझे व्यक्तिगत रूप
से ऐसा लगता है कि इन्हें जितना भी आरक्षण दिया जाये वो कम है / मेरे ये शब्द अलंकारिक
नहीं बल्कि वास्तविक स्थिति से प्रेरित हैं / मेरा उन सारे आरक्षण-विरोधियों से
आग्रह है कि एक बार निष्पक्ष नेत्रों से इनकी जटिल परिस्थितियों का अवलोकन करें,
निष्पक्ष ह्रदय से इनकी असहाय दशा की अनुभूति करें / कम से कम एक दिन ईमानदारी से
इनकी जिंदगी जी कर देखें तो पता चलेगा कि आपके अन्दर की मानवता और करुणा, आपके ऊपर
की निष्ठुरता और कठोरता के सारे आवरण को तोड़कर स्वंय को प्रदर्शित करने के लिए
लालायित है /
हमारी यात्रा के
अगले पड़ाव का साक्षी है कणुजा पंचायत/ यहाँ हमारी टीम करीब 4:00 बजे शाम में
पहुंचती है / रात 8:00 बजे तक दो गावों में सभा का आयोजन कर लोगों को कानून के
बारे में अवगत करा चुके थे / इस पंचायत के अधिकांश गावों की स्थिति काफी-कुछ
'ढालेडा की नारी बस्ती' से मिलती जुलती है / यहाँ भी लोग इसी कष्ट में हैं, न
बिजली की व्यवस्था, न पानी की व्यवस्था, पहाड़ से पानी के लिए नीचे उतरना, साथ ही
साथ बस्ती के लोगों की अन्य समस्याएं मन को व्यथित करती है / उनलोगों से भी सुबह
पंचायत में आने का आग्रह किया गया / सुबह भाड़ी भीड़ इकट्ठा हुई / सारे लोगों के
आवेदन हमारी टीम ने तैयार किये / बहुतो को मैंने स्वयं आवेदन लिखने की प्रक्रिया
से अवगत कराया ताकि हमारे जाने के बाद भी वे इस कानून का स्वयं प्रयोग कर सकें और
शेष ग्रामवासियों की भी मदद कर सकें / करीब 64 आवेदन एकल खिड़की पर जमा किये गए /
तत्पश्चात हमारी टीम ओड़ा पंचायत में एक और गाँव में जो बिलकुल पहाड़ियों के
बीचो-बीच थी, शाम में एक सभा का आयोजन करती है, और सभा समापन के पश्चात केलवाड़ा
पहुंचकर रात्रि में 'आजीविका ब्यूरो' के दफ्तर में आराम करती है / 'आजीविका ब्यूरो'
भी एक गैरसरकारी संगठन है जो श्रमिकों के हीत के लिए कार्य करता है / 'मजदूर किसान
शक्ति संगठन' के साथ इस संगठन का मित्रवत संबंध रहा है / हमारी इस यात्रा में इस
संगठन के सदस्यों का भी अपेक्षित सहयोग रहा है /
आज 31 मई है / दिन
है शुक्रवार / आज जनसुनवाई का दिन है / हमारी टीम सुबह 11:00 बजे पंचायत समिति
केलवाड़ा के सभागार में उपस्थित होती है / मुख्य सुनवाई अधिकारी के रूप में स्वयं
कुम्भलगढ़ के उपखंड अधिकारी श्री मोहन सिंह राणावत मौजूद हैं / साथ में हैं
तहसीलदार श्री काशीराम चौहान / इसके साथ-साथ अन्य विभागीय अधिकारी भी मौजूद हैं /
ठीक 12:00 बजे सुनवाई शुरू होती है / एक-एक करके समस्याओं को उपखंड अधिकारी के
समक्ष प्रस्तुत किया गया / कुछ समस्याओं का मौके पर ही उपखंड अधिकारी के द्वारा
निस्तारण किया गया जबकि शेष समस्याओं के निराकरण के लिए मौके पर मौजूद सम्बंधित
अधिकारीयों को निर्देश दिए गए / हमारी टीम के वरिष्ठ सदस्य पारस राम बंजारा ने उन
सभी नरेगा मजदूरों का भुगतान मुआवजा सहित दिलाने की मांग की जिनलोगों का भुगतान
2009 से बाकी है / इस मांग पर उपखंड अधिकारी ने अपनी स्वीकृति भी दी और उपस्थित
लोगों को भरोसा दिलाया कि जाँच के उपरांत यदि ऐसा पाया गया कि इस भुगतान में
अनुचित विलम्ब हुआ है, तो श्रमिकों का भुगतान मुआवज़ा सहित किया जायेगा / कुम्भलगढ़
के उपखंड अधिकारी श्री मोहन सिंह राणावत का जनता के प्रति मित्रवत व्यवहार, फरियाद
लेकर आये हुए लोगों की समस्याओं को बहुत ही ध्यानपूर्वक सुनने की आदत, जल्द से
जल्द समस्याओं के निराकरण के लिए प्रयास करना, अधिकांश सरकारी अधिकारीयों के तरह
टालमटोल-रवैये वाले व्यक्तित्व का न होना, गरीबों के प्रति ह्रदय में सहानुभूति और
नेत्रों से सम्मान का भाव झलकना आदि, उन्हें एक अलग कोटि के अधिकारीयों में खड़ा
करता है / पुरे यात्रा के दौरान उनके सहयोगपूर्ण व्यवहार ने हमारी टीम को उर्जावान
बनाए रखा / हमलोग रास्ते में चलते हुए भी उनकी कर्मठता की प्रशंसा करते रहते थे /
सच कहूँ तो उपखंड अधिकारी के उपरोक्त गुणों की झलक पाने के बाद मुझे अँधेरी रात
में दीपक का एक प्रकाश नज़र आता है जो धीरे-धीरे ही सही मगर उनके समस्त जीवन को
आलोकित करेगा जिन्होंने अपने जीवन को तम का पर्याय मान लिया है / ऐसा मेरा दृढ
विश्वास है / इस जनसुनवाई के पश्चात हमारी टीम अभी तक तीन-चार और पंचायतों का दौरा
कर चुकी है / इन पंचायतवासियों को भी इस कानून के बारे में अवगत करा चुकी है /
पूर्ण समर्पण के साथ हमारी टीम के सभी साथी अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को निभा रहे
हैं / यह यात्रा कुछ दिन और चलेगी और 14 जून ( शुक्रवार ) को होने वाले जनसुनवाई
के पश्चात समाप्त होगी / आज 6 जून है / मैं आज शाम में दिल्ली जा रहा हूँ / वहां
एक परीक्षा में बैठना है / 9 जून को फिर पटना में एक परीक्षा है / संभवतः मैं
परीक्षा देने के बाद वापस आऊंगा और यात्रा के अंत तक रहूँगा / अंत में मैं अपने
इस यात्रा संस्मरण का समापन यह कहते हुए करना चाहूँगा कि भले ही हमारी यह
पद-यात्रा अगले कुछ दिनों में समाप्त हो जाये, पर अंतर्मन से हमारी यह यात्रा
अनवरत और निरंतर चलती रहेगी /
:- ROHIT KUMAR
wah
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